गुरु कृपा (चौपाई)
गुरु कृपा (चौपाई)
गुरु का आशीर्वाद चाहिये।
सदैव कृपा-प्रसाद चाहिये।।
गुरु ही खेवनहार महा है।
रश्मिलोक की धार महा है।।
गुरु बिन ज्ञान असंभव जानो।
गुरु ज्ञानी को नित पहचानो।।
ज्ञानपुंज वह परम अलौकिक।
शिवनारायण दिव्य अभौतिक।।
गुरु को केवल नर मत जानो।
उन्हें ब्रह्मरूप सा मानो।।
गुरुमुख से जो निकलत वाणी।
उस में बैठी वीणापाणी।।
प्रातिभ महा विज्ञ अनुपम हैं।
ज्ञान विधान निधान सुगम हैं।।
जो गुरु को है नहीं जानता।
वह ईश्वर को नहीं मानता।।
शिष्य वही जो गुरु को भाता।
गुरु को उत्तम शिष्य लुभाता।।
जिसे ज्ञान की प्यास लगी है।
समझ शिष्यता वहाँ जगी है।।
भाग्यमान वह शिष्य कहाता।
जो सर्वेश्वर गुरु को पाता।।
गुरुकुल की है प्रथा पुरानी।
गुरु सिखलाता ज्ञान कहानी।।
गुरु में ज्ञानमयी गंगा हैं।
गुरु प्रमाण सत्य अंगा हैं।।
गुरु जिह्वा पर मधुर शारदा।
हंसवाहिनी दिव्य ज्ञानदा।।
गुरु को अमृत घट नित जानो।
उनको शीतल चंदन मानो।।
बिन गुरुवर के ज्ञान नहीं है।
आजीवन पहचान नहीं है।।
गुरु बिन मानव धक्के खाता।
स्थायी ठौर नहीं वह पाता।।
इधर-उधर भटका करता है।
निरा माथ पटका करता है।।
जो गुरु को सम्मानित करता।
चेतन बन कर सदा विचरता।।
हो नतमस्तक कर गुरु वंदन।
मुक्ति हेतु करते रह मंथन।।
विद्या पा कर मानव बनना।
भवसागर से पार उतरना।।
गुरुसेवक बन कर जो चलता।
शांतचित्त वह शिष्य गमकता।।
Renu
23-Jan-2023 04:57 PM
👍👍🌺
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